सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।
अर्थ : हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर अचर सो जाते हैं।आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती और जागती है।
हे करुणासागर आप हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।
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