आजचे सुभाषित, १६ जून २०२०, मंगळवार
स्थानभ्रष्टाः न शोभन्ते दन्ताः केशाः नखा नराः।
इति विज्ञाय मतिमान् स्वस्थानं न परित्यजेत्॥
अर्थ : जिस प्रकार मनुष्य के दांत, केश, नाखून इत्यादि अपने निश्चित स्थान पर ही शोभा देते हैं, इनके स्थान परिवर्तन करने से मनुष्य कुरूप हो जाता है । उसी प्रकार मनुष्य का अस्तित्व एवम् शोभा उसकी मातृभूमि से ही होती है, किञ्चित् लाभ के लिये मूल स्थान परिवर्तन करने से मनुष्य का अस्तित्व विकृत हो जाता है । इस तथ्य को जानने वाले बुद्धिमान् लोग कभी अपने मूल स्थान का त्याग नही करते।